Baba Balak Nath |
Baba Balak Nath Ji History in Hindi- मंदिर शाहतलाई, धौलगिरी की तलहटी में बसा बाबा बालक नाथ जी की तपोभूमि और कर्मक्षेत्र रहा है शाहतलाई मंदिर समूह के बाबा बालक नाथ जी में चार मंदिर हैं। मुख्य मंदिर बाबा बालक नाथ है जिसमें अखंड धूना लगा है। बाबा बालक नाथ जी के दुसरे मंदिर में बाबा व राजा हरि तथा गुगा राणा की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर शाहतलाई वट वृक्ष के नीचे बना है। गरुणा झाडी मंदिर उक्त तीनों मन्दिरों से तकरीवन 800 मीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर बाबा जी गरुणा झाडी के नीचे बैठकर तपस्या की थे। ये सब मंदिर दो पहाड़ियों के बीच स्थित हैं।
Baba Balak Nath ji
एक तरफ पूर्व की ओर धौलगिरी पर्वत है यहां बाबा दियोट सिद्ध की गुफा स्थित है। पशिचम की तरफ कोटधार है। मंदिर समूह शाहतलाई की समुन्द्र तल से उंचाई 650 मीटर है।
इस स्थान का प्राचीन नाम चंगर तलाई था। बाबा बालक नाथ जी द्वारा इस स्थान पर तप करने तथा माता रतनो की गाय चराने के बाद छाछ की तलाई वापिस करने के कारण छाहतलाई तथा फिर संवरकर शाहतलाई प्रसिद्ध हो गया। बाबा बालक नाथ के बारे में कहा जाता है के इनका जन्म युगों युगों में होता रहा है। भगवान शिव के शिष्य बाबा बालक ने कलियुग आने पर काठियावाड़ गुजरात में पिता नारायण विषनों वेष तथा माता लक्ष्मी के घर जन्म लिया। माता पिता ने इनका नाम देव रखा। बचपन से ही भगवान भक्ति में लीन देख संसार से विमुख होने के भय से माता -पिता ने इनका विवाह करवाने की बात चलाई तो वह घर परिवार छोड़कर भगवान की खोज में निकल पड़े। जूनागढ़ के महंत स्वामी दत्तात्रेय से शिक्षा प्राप्त कर वह सिद्धों की श्रेणी में आ गए और सिद्ध बाबा नाथ नाम से ख्याति प्राप्त की।
एक बार भ्रमण करते हुए बाबा वर्तमान शाहतलाई में पहुंच गए और माता रतनों के पास पहुंच कर उनकी गाय चराने की इच्छा प्रगट की और माता रतनों उन्हें प्रतिदिन मक्की की रोटी और छाछ देती थी। यह क्रम 12 वर्षों तक चलता रहा। जब बाबा जी का वहां से जाने का समय आया तो क्रोध में आकर रतनों माता ने अपनी लस्सी और मक्की की रोटियों का ताना दिया तो बाबा जी के खेतों में खड़ीं लहलहाती फसल दिखा दी। जब बाबा ने धूना स्थल पर चिमटा मारा तो तने के खोल से बारह वर्ष की संचित रोटियां भी निकल आईं, दूसरा चिमटा धरती पर मारा तो छाछ का फुहारा निकलने लगा और वहां छाछ का तालाब बन गया जिस कारण यह स्थान छाछतलाई कहलाया और फिर शाहतलाई हो गया। जिस स्थान पर लस्सी का तलाब बना वहां बाबा जी का चिमटा आज भी वहीँ गड़ा पड़ा है। प्राचीन वट वृक्ष तथा इसके नीचे धूना बाबा जी की धरोहर के रूप में जाना जाता है।
इस वट वृक्ष से 800 मीटर की दूरी पर तलाई बाजार के एक कोने पर गरुना झाडी मंदिर स्थित है। इस झाडी की आयु लगभग 50 वर्ष तक होती है परन्तु बाबा जी की शक्ति के द्वारा यह झाडी सैंकड़ों वर्षों से वहीँ स्थित है। एक वार गुरु गोरखनाथ अपने शिष्यों के साथ इस स्थान पर आ गए थे। गोरखनाथ ने शक्ति परिक्षण करना चाहा और बाबा को कड़ी चुनौतियाँ दीं, जिनका बाबा ने अपनी सिद्ध शक्तियों के बल पर समाधान कर दिए जाने के बाद गोरखनाथ के चेलों के साथ बल प्रयोग की स्थिति को आने से रोकते हुए बाबा जी आकाश में उड़कर धौलगिरी गुफा में आ पहुंचे तथा वहीँ समाधिस्थ हो गए।
रतनों माई जब गरुना की झाडी के पास आई तो बाबा जी को वहां ना पाकर रो -रो कर बाबा की पुकार करने लगी। माई की पुकार सुनकर बाबा जी पुन: प्रगट हुए और समझाया के द्वापर युग में जब में कैलाश धाम जा रहा था तो तुम्हारे पास बारह घड़ी ठहरकर शंकर भगवान के दर्शन के लिए तुम से मार्गदर्शन प्राप्त किया था, उन्ही सुखदायी 12 घड़ियों के बदले में मैंने बारह वर्ष तेरी गाय चराकर तुम्हारी सेवा की। तुम्हारी स्नेह भक्ति में बंधकर मैं कुछ समय गरुना की झाडी के पास रुका। हमारा तुम्हारा लौकिक नाता जितना था, वहा पूरा हो गया है फिर भी में जानता हूं के तुम मेरे दर्शनों के लिए सदैव लालायित रहोगी इसीलिए तुम अपने घर में मेरे नाम का आला स्थापित कर वहां धूप बत्ती कर मेरी पुकार किया करना में तुम्हे दर्शन दिया करूंगा।
इसके बाद रतनों माई ने अपने घर में बाबा जी का आला बनाया वहां वह पूजा किया करती और महीने के प्रथम रविवार को रोट चढाया करती आला के पास बाबा समय समय पर रतनों माई को दर्शन दिया करते। इसी के अनुसरण में बाबा जी के श्रद्धालुओं द्वारा अपने घर बाबा जी के नाम के आले स्थापित किये जाते हैं। बाबा जी ने अपने चिमटे के द्वारा पहाड़ी को चीर के खड्ड का प्रवाह दूसरी तरफ मोड़ दिया था। अब इस स्थान को नाम घेरा के नाम से जाना जाता है। भगवान शंकर ने द्वारपर युग में बाबा जी की तपस्या से अत्यंत खुश होकर आशीर्वाद रूप में वरदान दिया था के बालयोगी तुम कलियुग में अपनी परम प्रसिद्धि से भक्तों के परम आराध्य बनोगे तुम जिस बाल्यावस्था में यहां कैलाश पर उपस्थित हुए हों कलियुग में तुम ऐसे ही बालक बने रहोगे। आयु वृद्धि का तुम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
जैसे बाबा बालक नाथ जी सिद्धपीठ दियोट सिद्ध की प्रसिद्धि दूर दूर तक व्यात है वैसे ही शाहतलाई यहां बाबा बालक नाथ ने 12 वर्ष गायें चराई, बाबा जी की सिद्ध भूमि के रूप में दूर दूर तक मान्यता प्राप्त है। बाबा जी की पूजा आरती लोक विधान से धूप पात्र में धूप जलाकर की जाती है। पूजा के समय ऊँचे स्वर में कुछ बोला जा गाया नहीं जाता।
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